Present education system in hindi

 

                            




Article :- 

                                                      वर्तमान शिक्षा प्राणाली 

रुपरेखा :-

  1. प्रस्तावना 
  2. वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली 
  3. प्रारंभ 
  4. उद्देश्य 
  5. दोष 
  6. परिवर्तन की आवश्यकता 
  7. उपसंहार 

        1. प्रस्तावना - मानव जीवन के लिए ज्ञानवर्धन आवश्यक है | ज्ञान के बिना मनुष्य का जीवन पशुतुल्य है | ज्यों - ज्यों मनुष्य बड़ा होता जाता है त्यों - त्यों वह बहुत सारे बाते सिखने लगता है | इसे माध्यम शिक्षा | शिक्षा मनुष्य को आदर्श पथ पर ले जाती है | शिक्षा एक ऐसा स्थल है जहाँ बालक को नया आकर दिया जाता है | जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को नया आकर देता है उसी प्रकार शिक्षा विद्यार्थी जीवन को नया अकार देती है | 


        प्राचीन काल की शिक्षा प्रणाली और वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बहुत अंतर है | प्राचीन काल में विद्यार्थी आश्त्रम में रहकर प्रकृति और गुरु से शिक्षा ग्रहण करता था, परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली इससे अलग है जिसमे गुण भी है दोष भी है | 

      2. वर्तमान शिक्षा प्रणाली -  आज सरकारी, अर्ध सरकारी एवं गैर सरकारी रूप से चलने वाली अनेक प्रारंभिक पाठशाला है | बच्चे निर्धारित पाठ्यक्रम से शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं। प्रारंभिक शिक्षा के बाद माध्यमिक शाला, उच्च शिक्षा यह क्रम विद्यार्थी के लिए है | इसके पश्चात वह महाविद्यालय की पढ़ाई करता है | आज शिक्षा का यही क्रम है | पराधीनता के साथ प्राचीन शिक्षा पद्धति और पाठ्यक्रम प्रायः नष्ट हो गए |


3. प्रारंभ - अंग्रेजी शासनकाल में लॉर्ड मैकाले द्वारा प्रचारित शिक्षा ही आज के भारत की आधुनिक शिक्षा प्रणाली है | अंग्रेजों ने लिपिक बनाने की शिक्षा  प्रारंभ की थी यही स्थिति आज भी है | वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमे केवल नौकरी की मानसिकता ही दे पायी है | जिसमें कठिनाइयों से जूझने की क्षमता प्रदान नहीं है। अंग्रेजी भारत की राष्ट्रभाषा के सामान घोषित कि गई | प्रणाम्या हुआ कि भारतीय मस्तिष्क इतना संकुचित हो गया कि शिक्षा का उद्देश्य नौकरी करना है समझ लिया  गया | शिक्षा परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए  दी जाती थी | जीवन को सफल बनाने की क्षमता उस शिक्षा में नहीं थी | 



 4. उद्देश्य -  शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को मनुष्य बनाना है | इसमें आत्मनिर्भरता की भावना जागृत करना,  चरित्र निर्माण  करना होता है, परंतु वर्तमान प्रणाली इनमें से किसी भी उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करती | यह केवल नौकरी,  उधर पोषण के साधन बन गया है | आज बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ गई है। ऐसा कारण यह है कि आज विद्यार्थी  को सिद्धांत ज्ञान तो जाता है  पर वह व्यवहारिकता से दूर रहता है | यहाँ छात्र केवल नैतिकता के सिद्धांतो को केवल रटता है और केवल किताबो तक सीमित रखता है, परन्तु वातावरण में उसका आभाव पाकर जीवन में अमल नहीं कर पाता है | 


5. दोष - वर्तमान शिक्षा प्रणाली महँगी है | इसमें श्रम की भावना नहीं है | आज युवक शिक्षा ग्रहण करने के बाद नौकरी चाहता है जो मैकाले की दें है |

      यदि आधुनिक शिक्षा, किसी विधि प्राप्त भी हम कर सके तो क्या काम, बस क्लर्क बनकर पेट अपना भर सके |

    इस प्रणाली का दूसरा दोष यह है की इससे मनुष्य की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक शक्ति का विकास नहीं हो पाता है | वर्तमान शिक्षा प्राप्त  युवक पाश्चात्य सभ्यता की ओर आकर्षित होकर भारतीय संस्कारों व रीति-रिवाजों से दूर हटने लगता है | यही कारण है कि आज की शिक्षा प्रणाली विद्यार्थी को उदंड, अनुशासनहीन,  चरित्रहीन और असभ्य बनाती है | ऐसे ही शिक्षा के कारण बेरोजगारी, भ्रष्टाचारी,  मिलावट खोली तथा नौकरशाही की भावना बढ़ रही है। लोग परिश्रम से दूर होते जा रहे हैं। उनका नैतिक पतन भी हो रहा है। आज विद्यार्थी ना गुरुजनों को सम्मान कर पाता है और ना माता-पिता का। वह केवल कल्पना की उड़ान में सुनहरे भविष्य को सवारना चाहता है। यह शिक्षा प्रणाली  का ही दोष है जो ठोस धरती पर टिकी है | 


  6. परिवर्तन की आवश्यकता - आज हमें  ऐसी शिक्षा पद्धति चाहिए  जिससे पुरानी प्रणाली में आमूल परिवर्तन हो सके | हमें ऐसी शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है से देश का  हर विद्यार्थी वीर सैनिक बन सके और नैतिक, सामाजिक,  सांस्कृतिक तथा राजनीतिक  शक्तियों को सही विकास कर सके।

         स्वतंत्रता के पश्चात शिक्षा के संबंध में सरकार खूब विचार  विमर्श कर नई योजनाएं बना रही है। शिक्षा के मूल रूप से मानव में सहयोग, श्रम प्रियता, रचनात्मक, बौद्धिक, चैतन्य आदि गुणों का विकास  हो सके।  हमारी सबसे प्राचीन शिक्षा पद्धति,  जो व्यावहारिक थी, मनुष्य को मनुष्य से जोड़े रखती थी, का सहयोग लेना चाहिए।  आज औद्योगिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए, जिसमें शिक्षित नवयुवक बेरोजगार ना हो, वह स्वावलंबी बने। आज की शिक्षा प्रणाली ऐसी हो जिसमें नई वर्क में सच्ची राष्ट्रीय भावना का संचार हो |

          नई शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो | औद्योगिक,  व्यवसायिक,  व्यवहारिक शिक्षा पर ध्यान पहले देना चाहिए |

           आज कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रॉनिक्स,  इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री, एनवायरमेंट साइंस, रिलेशन का प्रयोग हो |  पाठ्यक्रम में क्रांतिकारी परिवर्तन हो | शिक्षा को मानवीय संसाधनों के विकास के लिए एवं नीचे स्तर के लोगों की बुद्धि विकास के लिए  सहयोग देना चाहिए। प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, साक्षरता का कार्यक्रम जो जीवन की आवश्यकता से परिपूर्ण है, इनका विकास होना चाहिए जिससे नई खोज की जानकारी हो |

            शारीरिक श्रम, खेल कूदो की शिक्षा भी देना चाहिए |  सभी विद्यार्थी कला, विज्ञान, साहित्य, तकनीकी विषयों में आगे बढ़े। आज की दुनिया अति आधुनिक हो रही है इसीलिए हमे आधुनिक शिक्षा पर भी ध्यान देना चाहिए | शिक्षा व्यवस्था में भाषा को सर्वोपन्न बनान आवश्यक है | साथ ही प्रांतीय भाषा की उन्नति में सहयोग दे |  राष्ट्रीय भाषा को दुनिया के विकसित भाषा के बराबर लाना आवश्यक है।

           मुख्यतः नई शिक्षा व्यवस्था में,  सारे देश के लिए एक अनिवार्य पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए | आज सरकार इन विषयों पर पहल कर रही है।


        7. उपसंहार -  शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास होना चाहिए | शिक्षा का उद्देश्य न ही नौकरी पाना या जीवन को भोग विलाश से संपन्न करना है बल्कि उच्च शिष्टाचार, नैतिकता, भी है | यह हमारे ऊपर है की हम शिक्षा को किस तरह से उपयोग करते है हम युवा  हिंसा, सांप्रदायिक, जातीयता,  भाषायी विवाद के संकीर्ण विचार से निकलकर राष्ट्रिय एवं विश्वकल्याण की भावना की ओर अग्रसर होना चाहिए |


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