ऋतुओं के प्रकार
ऋतुओं के प्रकार
ग्रीष्म ऋतु -
ग्रीष्म ऋतु मार्च महीने से मई के अंत तक रहती है। 21 मार्च सूर्य भूमध्य रेखा पर सीध में चमकता है। मार्च महीने के बाद मई तक तापमान में वृद्धि होती है। 21 जून को सूर्य जब कल का दिखा से लंबवत पर स्थित होता है उस समय उत्तर भारत में तापमान अपने चरम सीमा पर होता है। तापमान की अधिकता के कारण थार के मरुस्थल से लेकर पूर्व में गंगा के मध्य मैदान तक वायुदाब का क्षेत्र बनने लगता है। मार्च महीने से मई महीने तक गर्म एवं शुष्क हवाएं तेजी से बहती है। जो रात में उसकी गति धीमी हो जाती है एवं दिशा भी कोई निश्चित नही होता। इन हवाओं को लू कहते है। ये हवाएं हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार तथा अन्य मैदानी भागों में महसूस कि सकती है।
वर्षा ऋतु -
वर्षा ऋतु लगभग जून माह से सितंबर माह तक चलती है। संपूर्ण भारत में 85 से 90 प्रतिशत वर्षा इन्हीं माह में होती है।
भारत के साथ-साथ बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल में भी वर्षा इसी माह के अंदर होती है। इस समय तापमान, वायुदाब हवाओं के बहने की दिशा और वर्षा की दिशा अन्य ऋतुओं की तुलना में परिवर्तन हो जाता है तापमान में कमी आ जाती है क्योंकि नम हवाएं बहने लगती है। कृषि से संबंधित सभी कार्य इन्हीं माह से शुरू हो जाती है।
दक्षिणी - पश्चिमी मानसून - भारत में जून माह से सितंबर माह तक चलने वाली भाषा को मानसून वर्षा कहते हैं। मानसून शब्द का उपयोग भारत में सबसे पहले किया जाता है। अरब के सौदागर पालदार जहाजों की सहायता से इन हवाओं के सहारे यात्रा करते थे। इन हवाओं को यह लोग मौसमि भी कहते थे। अरबी भाषा में मौसमि शब्द का अर्थ है - रितु। इसलिए प्रत्येक वर्ष वर्षा लाने वाली हवाओं को मानसून कहा जाने लगा। हवाओं का नाम उस दिशा से तय होता है जिस जिससे हवा आ रही होती हैं। ग्रीष्मकालीन मानसून दक्षिण-पश्चिम दिशा से आती है तथा उत्तर-पूर्व दिशा से उत्तर-पश्चिम की ओर चली जाती है। दक्षिण-पश्चिम दिशा से चलने के कारण इसे दक्षिण पश्चिम मानसून कहा जाने लगा सवाल यह है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति कैसे होती है ? उसको उत्पत्ति कई व्याख्या में समझी जा सकती है -
1. मई तथा जून के महीने में सूर्य कि ताप अधिक होने के कारण पाकिस्तान, अफगानिस्तान, राजस्थान में निम्न दाब का केंद्र बन जाता है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध मेडागास्कर द्वीप और पश्चिमी आस्ट्रेलिया तट के पास उच्च वायु दाब रहता है। इन्ही दोनों अरब सागर में वायु दाब उच्च रहता है। इसके कारण दक्षिण पूर्वी व्यापारिक हवाएं उत्तर की ओर नहीं जा पाती। मई माह के बाद अरब सागर में उच्च वायु दाब खत्म हो जाता है। फलस्वरूप दक्षिण - पूर्वी व्यापारिक पवने तेजी से उत्तर - पश्चिम में निम्न वायुदाब केंद्र की ओर आकर्षित होती है। भूमध्य रेखा पार करने के बाद यह हवाएं फेरल नियम के अनुसार अपनी दिशा को बदल देती है और अपनी दाहिनी ओर मुड़ जाती है। इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इन हवाओं को दक्षिण - पश्चिमी मानसून हवाएं भी कहते हैं। यह हवाएं 30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती है महासागरों के ऊपर से गुजरने के कारण इनमें आर्द्रता होती है जिससे अधिक वर्षा करती है।
2. धरती की तपने से भूमध्य रेखा के आसपास की हवाए गर्म होकर ऊपर उठते हैं। इस वजह से भूमध्य रेखा पर न्यून वायुदाब का क्षेत्र बनता है। न्यून या निम्न दाब के कारण उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध की ओर से हवाई इस क्षेत्र की तरफ बहती है और यहां आकर आपस में मिल जाती है। इसलिए इस क्षेत्र को इंटर ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस जोन भी कहते हैं। साल भर सूर्य की सीधी किरणें कर्क और मकर रेखा के बीच अलग-अलग जगहों पर पड़ती है इसलिए यह न्यून दाब क्षेत्र भी नियमित रूप से जगह बदलता रहता है। जून माह में सूर्य जब कर्क रेखा पर सीधा चमक रहा होता है तो निम्न दाब का यह क्षेत्र खिसककर भूमध्य रेखा से दूर उत्तर की ओर चला जाता है। दिसंबर माह में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी पड़ती है और निम्न दाब की यह पट्टी दक्षिणी गोलार्ध की तरफ खिसक जाती है। इसके खिसकने से यह दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक हवाओं को आकर्षित करती है।
3. इसी समय 10 से 16 किलोमीटर की ऊंचाई पर तीव्र गति से हवाओं का प्रभाव पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर आरंभ हो जाता है जो सतह पर ऊपर के विपरीत मानसून के पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर होने वाली प्रवाह में सहायक होता है। मानसून भारत में सभी स्थानों पर एक साथ न पहुंचकर अलग-अलग तिथियों में पहुंचती है। सर्वप्रथम केरल में 1 जून को, मुंबई में 7 जून को, तथा छत्तीसगढ़ में 15 जून के आसपास आती है दक्षिणी प्रायद्वीप के कारण दक्षिण पश्चिम मानसून दो भागों में बंट जाती है। एक अरब सागर की ओर से प्रवाहित होती है दूसरी बंगाल की खाड़ी की ओर से प्रवाहित होती है।
3 शरद ऋतु या मानसून की वापसी - अक्टूबर माह के उत्तरार्ध में उत्तर भारत का तापमान तेजी से गिरने लगता है। नवंबर माह के शुरुवाती में उत्तर-पश्चिम भारत के निम्न वायुदाब की अवस्था बंगाल की खाड़ी में स्थानांतरित हो जाती है। ये स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है जिससे अंडमान सागर के सपीम उसके आसपास चक्रवात उत्पन्न होते हैं। यह चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं और कभी-कभी विनाशकारी रुप ले लेते हैं जो व्यापक और भारी वर्षा करती है। कृष्णा कावेरी और गोदावरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा वाले प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते रहते हैं। कभी-कभी यह चक्रवात उड़ीशा, पश्चिम बंगाल, एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्र में पहुंच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिक वर्षा का कारण यही चक्रवात होती है। अक्टूबर में देश के अधिकांश भागों का औसत तापमान 25 डिग्री से 26 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। राजस्थान गुजरात एवं पूर्वी तटीय मैदान में औसत तापमान 27 डिग्री सेल्सियस से अधिक तथा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के आंतरिक भागों में यह 25 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है।
4 शीत ऋतु - दिसंबर माह से फरवरी माह तक शीत ऋतु चलता है। इस समय उत्तर भारत के तापमान में बहुत गिरावट आती है। जनवरी-फरवरी माह में पंजाब कश्मीर आदि में तापमान हिमांक के नीचे चला जाता है जबकि दक्षिण भारत का औसत तापमान 14 से 15 डिग्री सेल्सियस होता है। यही कारण है कि जनवरी-फरवरी माह में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में गेहूं का की जाती है और केरल तथा तमिलनाडु में चावल की फसल अधिक होती है। इन दिनों में चक्रवात के कारण तमिलनाडु और अंडमान निकोबार दीप समूह में भारी वर्षा होती है। शीत ऋतु में भूमध्य सागर से आने वाले चक्रवात के कारण कश्मीर और उत्तर पश्चिम भाग में शीतकालीन वर्षा या हिमपात होता है। उत्तर भारत में इन महीनों में अक्सर कोहरा छाया रहता है।
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