भारत के महान वैज्ञानिक
भारत के महान वैज्ञानिक
भारत का ज्ञान हमारे वेदों में समाहित है। वेदों में उपलब्ध ज्ञान की वर्णन होने से हमारी सभ्यता संस्कृति और समृद्ध ज्ञान की जानकारी मिलती रही है। आज जिसे हम विज्ञान कहते हैं वह हमारे ज्ञान के अंतर्गत ही समाहित है।
प्राचीन/आधुनिक काल के कुछ प्रमुख वैज्ञानिक -
1 वराह मिहिर -
वाराणसी का जन्म सन 499 लगभग में हुआ था। इन्होंने प्रथम बार विचार व्यक्त किया कि कोई शक्ति है जो पृथ्वी के साथ वस्तुओं को चिपकाए रखने में सहायक है। इनके द्वारा 'पंच सिंद्धान्तिका' नामक ग्रंथ की रचना की गई थी। इनका 'बृहदवाराही संहिता ' नामक ग्रंथ ज्योतिष शास्त्र का प्रधान आधार माना जाता है।
2 ब्रम्हागुप्त -
इनका जन्म सन 518 गुजरात में हुआ था। उन्होंने सबसे पहले शून्य के उपयोग के लिए नियम बताए। उच्च गणित की एक शाखा संख्यात्मक विश्लेषण का काम किया इन्होंने अंकगणित और बीजगणित में अंतर बताने के लिए गणित की दो शाखाएं मानी। उन्होंने वराहमिहिर की तथ्य की व्याख्या करते हुए कहा कि पृथ्वी अपनी प्रकृति के कारण वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। इनका 2 ग्रंथ है - ब्रह्मास्फुट सिद्धांत तथा खंड खाद्यक ।
3 डॉ होमीजहाँगीर भाभा -
इनका जन्म 30 अक्टूबर सन 1909 को मुंबई में हुआ था। उन्होंने इंजीनियरिंग के अध्ययन के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय गए। के सन 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डॉक्टर होमी जहांगीरभाभा ने अंतरिक्ष विज्ञान,इलेक्ट्रॉनिक, खगोल विज्ञान के क्षेत्र में प्रयोगों को नई दिशा प्रदान की। क्वांटम सिद्धांत, इलेमेंट्रीफिजिकल पार्टिकल्स एवं कास्मिक रेडिएशन की रचनाएं की। इनका निधन 24 जनवरी सन 1966 में हुआ।
4 डॉ शांति स्वरूप भटनागर -
भटनागर जी का जन्म 21 फरवरी सन 1893 को पंजाब के शाहपुर जिले में हुआ था। डोनेशन 1913 में एमएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। इन्होंने गंध रहित मोम, केरोसीन को निथारने तथा पेट्रोल को साफ करने के लिए विधियों का आविष्कार किया। सन 1940 ईस्वी में चुम्बकीय रसायन का पहला ग्रंथ प्रकाशित हुआ। सन 1943 में रॉयल सोसाइटी के सदस्यगण चुने गए। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म भूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1 फरवरी सन 1955 में इनका निधन हो गया।
5 डॉ प्रफुल्ल चन्द्र राय -
प्रफुल्ल चन्द्र राय जी का जन्म 2 अगस्त 1861 को पूर्वी बंगाल में हुआ था। इन्होंने 1887 ईस्वी में डी. एस. सी. ऐडेनबेरा विश्विद्यालय से प्राप्त की। सन 1889 ईस्वी से 1916 तक ये प्रेसिडेंसी कॉलेज कोलकाता के प्रोफेसर रहे। सन 1896 में उन्होंने मरक्यूरस नाइट्रेट नामक पदार्थ को बनाया। पारे के नाइट्रेट तथा उनके व्युत्पन्न बाईट्राइटस की चालकता निकालना ये रसायन शास्त्र में उनकी महत्वपूर्ण देन है। प्रफुल्ल चंद्र राय जी का निधन 16 जून 1944 को हुआ।
6 डॉ विक्रम साराभाई -
इनका जन्म 12 अगस्त सन 1919 को गुजरात के अहमदाबाद जिले में हुआ था। उन्होंने लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से सन 1940 में गणित और भौतिक शास्त्र में बी.ए. की परीक्षा मुद्दीन न की थी। नोनेरा समय अंतरिक्ष की गहराइयों से आने वाले कॉस्मिक किरणों का अनुसंधान करके कैंब्रिज विश्वविद्यालय से सन 1947 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। सन 1961 में यह भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के सदस्य बने। डॉक्टर साहब सन 1961 में इंटरनेशनल काउंसिल आफ साइंटिफिक यूनियन के सदस्य बने। सन 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ परिषद के विज्ञान विभाग के अध्यक्ष बने। 31 दिसंबर सन 1971 ईस्वी में त्रिवेंद्रम के पास थुम्बा नामक जगह का निधन हो गया।
7 डॉ सत्येन्द्रनाथ बसु -
उनका जन्म 1 जनवरी सन 894 में कोलकाता में हुआ था। सत्येंद्र नाथ बसु ने 1915 ईस्वी में कोलकाता विश्वविद्यालय से भौतिक शास्त्र में एम. एस. सी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। 1924 ईस्वी सन् 1925 ईस्वी तक मैडम क्यूरी के साथ उन्होंने काम किया। इन्होंने बोसोन कणो कि व्यवहार की गणितीय व्याख्या विकसित किया। जिसे बोस आइंस्टीन सांख्यिकी भी कहा जाता है। इनके अपने अनुसंधान कार्यों से ही नाभिकीय भौतिकी परमाणु कणो को दो भागों में विभक्त करना संभव हुआ। जिनके कारण बोसोन के नाम से भी जाना जाता है। बोसोन कणो पर आधारित उनके शोध को शुरुवात में सभी विज्ञान पत्र-पत्रिकाओं में छापने से इंकार कर दिया था। बाद में अल्बर्ट आइंस्टाइन ने उनके शोध कार्य से प्रभावित हुए और दोनों ने 1925 से 1926 तक एक साथ शोध कार्य किया। उनके सिद्धांत के आधार पर जीनेवा महाप्रयोगशाला में जिस गॉड पार्टिकल की खोज की थी उसे पीटर हिंग्स एवं सत्येंद्र नाथ बसु नाम नाम से ही बोसोन कण का नाम भी दिया गया। इनका निधन 4 फरवरी सन 1974 को हुआ था।
8 जगदीश चंद्र बसु -
30 नवंबर 1800 पूर्वी बंगाल में इनका जन्म हुआ था उन्होंने देश तथा विश्व को 'वनस्पति चेतना का सिद्धांत' दीया था और इस शक्ति का स्पंदन को जांचने के लिए क्रेस्कोग्राफ नामक यन्त्र की रचना की। जगदीश चंद्र बसु 'बेतार के तार' सिद्धांत का अविष्कारक है। सन 1895 में उन्होंने मारकोनी द्वारा अपने अविष्कार को पेटेंट कराने से 1 वर्ष पूर्व बसु इस उपकरण का सार्वजनिक प्रदर्शन कर किये थे। इस तथ्य को अब पाश्चात्य वैज्ञानिक ने भी मान लिया। उन्होंने सबसे पहले एक ऐसा यंत्र बनाया जिसमें से सूक्ष्म तरंगे निकलती थी। बसु प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने पदार्थों की संरचना को समझने के लिए मायक्रो वेव का उपयोग किया था। 29 को 'वेवगाइड' भी कहते हैं। विज्ञान के नई शाखा " जैव भौतिकी " के विकास में इनका विशेष योगदान रहा है।
इनके अलावा भी हमारे बहुत सारे वैज्ञानिक है जिन्होंने विज्ञान की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
कुछ उनके उदाहरण -
हरगोविंद खुराना - जैनेटिक कोड कृत्रिम
जीन
सी.वी. रमन - रमन इफेक्ट, थ्योरी ऑफ
क्रिस्टल
रामनाथन - द्रव्यों में प्रकाश का बिखरना
डॉ. सी.बी. देसाई - गोबर गैस संयंत्र ।
इस तरह हमारे भारतीय वैज्ञानिकों ने विश्व स्तर पर हमारे भारत का अपने खोजो और अनुसंधानों से नाम ऊंचा किया है। इनकी लगन और निष्ठा से विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत योगदान रहा है। जिनके द्वारा न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व के विकास के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है। आज के भारत के युवा वैज्ञानिक विदेश भेजे जाते है तथा वहां उत्कृष्ट प्रदर्शन भी करते है।
इन सभी वैज्ञानिकों को जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र उत्तम प्रदर्शन कर देश - दुनिया को विकास की राह पर ले गया उनको सम्मान व आदर करना हमारा कर्तव्य है।
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