भारत में वनों का प्रकार
भारत में वनों का प्रकार
वनों के बारे में बहुत सारे लोगों का अलग-अलग धारणाएं होती है जिनका महत्व भी अलग-अलग प्रकार का होता है। वनों में अनेक प्रकार के पेड़ - पौधे तथा जंगली जीव - जंतु का निवास स्थान होता है। कुछ लोगों के लिए वन डरावनी होते तो कुछ लोगों के लिए वन सुंदरता का प्रतीक। कुछ लोग वनों की पूजा भी करते है। आदिवासी लोग जंगलों में निवास कर अपना जीवन यापन करते है। वन आर्थिक संसाधनों का बहुमूल्य भाग है। वनों का उपयोग अलग-अलग तरह से भी होता है कुछ लोग वनों का उपयोग झोपड़ी बनाकर निवास करने के लिए करते हैं तो कुछ लोग दोनों को पर्यटन की तरह करते हैं।
वनों का वर्गीकरण - वनों का वर्गीकरण प्रकाश किया जा सकता है जैसे वनों की सघनता के आधार पर, उन में पाए जाने वाले वनस्पतियों के आधार पर या प्रशासनिक व्यवस्थाओं के आधार पर। वनों के सघनता के आधार पर वनों को इन श्रेणियों में बांटा जा सकता है बहुत घने वन, घने वन, खुले झाड़ी वाले वन, विकृत वन आदि।
प्रशासनिक वर्गीकरण - वन विभाग द्वारा प्रशासनिक व्यवस्थाओं के आधार पर वनों का तीन भागों में विभाजित किया गया है -
आरक्षित वन - किस प्रकार के वनों का सरकार द्वारा आरक्षण प्रदान किया जाता है जहां कोई पेड़ नहीं काट सकता, ना जानवर चरा सकता है, ना घरेलू उपयोग में लाया जा सकता है। हमारे देश के लगभग 54.4% वैन इसके अंतर्गत आते हैं।
रक्षित वन - इस प्रकार के वनों में पशुओं को चराने, घास काटने, जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने, लघु वनोपज करने आदि की सुविधा दी जाती है। देश के लगभग 29.2% वब इसमे आते है।
अवर्गीकृत वन - इन वनों में पशुओं को चराने तथा लकड़ी काटने की सुविधा दी जाती है। भारत के लगभग 16.4% वन इस प्रकार में आते है।
वनों में पाए जाने वाले पेड़ों का आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। किस तरह के पेड़ कहां प्राकृतिक रूप से उगेंगे यह वहां के तापमान, वर्षा तथा मौसम के चक्रण के अनुसार निर्धारित होता है। उदाहरण के लिए चीड़ और देवदार जैसे और कोणधारी पेड़ केवल बहुत ठंडे प्रदेशों में पाए जाते हैं जहां पर बर्फ बहुत भारी मात्रा में गिरता है और सालभर नमी रहती है। ऐसे स्थानों में पेड़ साल भर हरे रहते है। यदि साल भर नमी रहे मगर तापमान ठंडा ना होकर गर्म हो तो वहां दूसरी तरह के पेड़ उठते हैं यह फलदार चौड़ी पत्ती वाले पेड़ होते हैं जो सालभर हरे होते हैं लेकिन गर्म प्रदेश जहां वर्षा कुछ महीनो के लिए होता है वहां सागौन जैसे पेड़ पाये जाते हैं। गर्मी के महीनों में इनके पत्ते झड़ जाते हैं और बारिश में नए पत्ते उग आते हैं।
वनों का वर्गीकरण वहां की जलवायु और उगने वाले पेड़ो के आधार पर भी किया जाता है। इस आधार पर भारत मे वनों को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है -
1 उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन -
इस प्रकार के वन ऐसे प्रदेशो में होते हैं जहां साल भर गर्मी पायी जाती है और अधिकांश महीनों में वर्षा होती है।
जहां वर्षा की मात्रा प्रति वर्ष 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है यहां के पेड़ों की पोषण वृद्धि के लिए साल भर गर्मी और नमी मिलती रहती है यहां के वन बहुत ही घने होते हैं और जहां अनेक तरह के पेड़ पौधों लताओं का उगना संभव हो पाता है।
यह वन साल भर हरे रहते हैं क्योंकि पत्ते झड़ते हैं तुरंत ही नए पत्ते उग आते है। यहाँ के जंगलों में अनेक प्रकार के जीव - जंतु मिलते है जिनकी तादाद अधिक होती है। भारत में ऐसे वन पश्चिमी भाग में जहां वर्षा अधिक होती है, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह असम जैसे राज्यो में स्थित है। यहां की प्रमुख वनस्पतियां है बेनी, बांस गुरजन, जामुन, सेमल, कदम, हल्दू, शीशम, आम आदि।
2 मानसूनी पतझड़ वन -
मानसूनी वन भारत के विशिष्ट वन है। हमारे देश के लगभग 70 % वन मानसूनी वन है। मानसूनी वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां गर्मी पड़ती है और साल भर कुछ महीने वर्षा होती है वर्षा की मात्रा 75 सेंटीमीटर से 200 सेंटीमीटर तक होते हैं यानी बहुत कम ना अधिक होती है। इन पेड़ों की पत्तियां अकार में चौड़ी होती है यह पेड़ गर्मी के सूखे दिनों में नमी बचाने के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं ताकि पत्तियों से होने वाले वाष्पीकरण से रोका जा सके बाद में पत्तियां फिर से नयी आ जाती है। सूखे वाले महीनों में पत्तियों के गिरा देने के कारण इन्हें पतझड़ वाले बंधी कहते हैं हमारे राज्य में अधिकांश वन इसी श्रेणी में आते हैं मानसूनी वाले वनों को वर्षा के आधार पर दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है। अधिक वर्षा वाले आर्द्र मानसून, कम वर्षा वाले शुष्क मानसूनी वन।
आर्द्र मानसूनी वन - इन वनों में 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इन वनों के पेड़ बच्चे होते हैं और कुछ बड़े और सदाबहार पेड़ होते हैं। इनके नीचे झाड़ियां व लताएं भी होती है। यह मुख्यतः छत्तीसगढ़ के अधिकांश भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आदि राज्यों में पाए जाते हैं। यहां के प्रमुख वृक्ष सागौन, साल, आंवला, आम, नीम, चंदन है। इनके अलावा खैर, कोसम, अर्जुन आदि वृक्ष पाए जाते हैं। आर्द्र मानसूनी वन सदाबहार वनों की तुलना में अधिक सघन नहीं होते और पेड़ों को ऊंचाई भी अपेक्षा से कम होती है।
शुष्क मानसूनी वन - शुष्क मानसूनी वन उन क्षेत्रो में पाए जाते हैं जहां वर्षा की माता 70 से 100 सेंटीमीटर के बीच होती है मैं अधिकांश पेड़ों के पत्ते गर्मी में झड़ जाते हैं यह वन कम घने होते हैं तथा पेड़ों के नीचे झाड़ियां भी कम पाई जाती है जिस कारण यहां जमीन पर घास उग जाती है। यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के अधिकांश क्षेत्र में पाए जाते हैं। यहां मुख्यतः सागौन, पलाश, खैर, तेंदू, महुआ तथा शीशम है। इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग के जंगलों में कृषि कार्य हेतु साफ कर दिया जाता है।
3 कांटेदार झाड़ी वाले वन -
जिन क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा 70 सेंटीमीटर से भी कम होती है वहां कांटेदार झाड़ियों वाले वन पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों के पेड़ जैसे बबूल, बेर, खैर आदि होते। हैं ये वन सघन नहीं होते पेड़ दूर-दूर पर स्थित होते हैं जिनके बीच घास और काटेदार झाड़ियां होते है। ऐसे वन राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, के मरुस्थलीय वाले क्षेत्रों मे पाये जाते है। वर्षा की कमी के कारण इन वनों में कांटेदार झाड़िया और कटीले वृक्ष उगते है। यहां के वृक्ष के तने कम मोटाई वाले होते है।
4 समुद्र तटीय वन -
समुद्र किनारे ज्वार-भाटा के कारण खारी समुद्री जल बढ़ते - चढ़ते रहता है। जिससे जमीन और पानी मे नमक की की मात्रा अधिक होती है। इन क्षेत्रों मे पाये जाने वन को समुद्र तटीय वन कहते है। इन्हें वन भी कहते है।
5 पर्वतीय वन -
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी होती है तथा यह ऊचाई के साथ - साथ इसमे अंतर दिखाई देने लगता है।
सबसे ऊंचे स्थान में वनस्पति नही के बराबर पायी जाती है। यहां बर्फ जमी रहती है। जब गर्मी के महीनों में बर्फ पिघलती है तो नीचे मुलायम घास उग जाती है। उससे भी निचले इलाकों में सदाबहार कोणधारी वन पाये जाते है। जिनमे में से चीड़ और देवदार के पेड़ प्रमुख है। उससे भी नीचे मिला जुला जंगल पाया जाता है। जिसमे चीड़ के साथ - साथ चौड़ी पत्ते वाले वृक्ष पाये जाते है।
I like 5th point
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