Economics areas and activities in Hindi

                 


भारत के आर्थिक क्रियाएं एवं आर्थिक क्षेत्र

 

आर्थिक क्रियाएं - हमारे आसपास लोग अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए तरह के काम कहते हैं । कहीं ना कहीं इन सभी कार्यों से वस्तुओं का उत्पादन होता है जैसे - बास की टोकरी बनाना है, सीमेंट का उत्पादन, फसल का उत्पादन, आदि। दूसरी ओर कई लोग सेवा प्रदान करते हैं उदाहरण के लिए बस चलाने वाला ड्राइवर, स्कूल में शिक्षा देने वाला शिक्षक, सरकारी विभागों में कार्य करने वाला कर्मचारी आदि। इसी तरह कई लोग सेवा प्रदान कर उसके बदले में धन प्राप्त करते हैं। वस्तुओं की तरह ही यहां लो पैसों से सेवा को खरीदते हैं। 

इनमें से अधिकांश के हैं ऐसी क्रियाएँ है जिनमें हम धन का लेनदेन करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी क्रियाएँ हैं जहां वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त करने के लिए धन का लेनदेन नहीं करना पड़ता है। कुछ आर्थिक क्रियाएँ इस प्रकार है - 

  1. किसान के द्वारा अनाज को उगाना एवं उसको बेचना। 

  2. व्यापारियों द्वारा उत्पादित सामग्री बाजार में खरीद बिक्री करना।

  3. स्कूल के शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों को पढ़ाना।

  4. दुकान लगाकर विभिन्न वस्तुएं बेचना।

  5. बढ़ई द्वारा फर्नीचर बनाना एवं बेचना।

  6. कारखानों द्वारा कागज बनाकर बेचना।


अर्थव्यवस्था के क्षेत्र ( sectors of the economy ) - विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएं किसी न किसी से क्षेत्र से संबंधित होती है। वस्तुओं का उत्पादन एवं सेवाओं को निश्चित क्षेत्र में वर्गीकृत कर सकते हैं। इन्हें उद्योग क्षेत्र, कृषि क्षेत्र, और  सेवा क्षेत्र में विभाजित किया जा सकता है। ऐसा करने से इन क्षेत्रों का भारत के कुल उत्पादन में योगदान का ज्ञान आसानी से पता लगाया जा सकता है।


1 कृषि एवं संबंधित क्षेत्र ( agriculture and allied sector ) - 

क्षेत्र में उत्पादन की प्रक्रिया मुख्यतः प्रकृति पर ही निर्भर रहती है।



इसमें प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कृषि कार्य के लिए किया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे गेहूं, धान, मक्का, कपास, बाजरा आदि का उत्पादन किया जाता है। कृषि से संबंधित वनोपज भी आती है। उन्हें हम फल - फूल, जड़ी - बूटियों,  गुण शहद सहित कई उपयोगी वनस्पतियां प्राप्त होती है।  इस प्रकार कई क्षेत्रो में पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे कृषि भी सम्मिलित है। 


2 उद्योग क्षेत्र ( industrial sector ) - इस क्षेत्र में मनुष्य अपने श्रम के प्रयोग से आवश्यक वस्तुओं का निर्माण करता है जिसमे औजारों तथा मशीनों का प्रयोग में लाता है। 

उद्योग का मुख्यतः कुटीर उद्योग ( सूक्ष्म उद्योग ), लघु उद्योग, मध्यम उद्योग एवं वृहद उद्योग के रूप में होता है। घरो में छोटे पैमाने में की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन कुटीर उद्योग में आता है। कुटीर उद्योग की तुलना में लघु पूंजी और श्रमिक अधिक संख्या में लगता है। इनमे छोटी व मध्यम मशीनों का उपयोग उत्पादन के लिए किया जाता है, जैसे - धान मील, छपाई कारखाना, कलपुर्जे आदि बनाने वाला कारखाना इसमे शामिल है। वृहद उद्योग में लघु उद्योग की तुलना में अधिक श्रमिक और अधिक पूंजी लगती है। इसमें वस्तुओं का उत्पादन बड़े - बड़े कारखानों में होता है। जिसके लिए अधिक श्रमिको की आवश्यकता होती है।

सीमेंट कारखाना, इस्पात उद्योग, मोटर सायकिल उद्योग आदि इनके उदाहरण है। 


3. सेवा का क्षेत्र - इस क्षेत्र में विशिष्ट प्रकार उत्पादन सेवा के रूप में होता है, जैसे - चिकित्सा, शिक्षक, वकालत, आदि पेशेवरों द्वारा की गई सेवाओं को इसमें शामिल की गयी है। इसके अतिरिक्त इनमें उन सेवाओं को भी शामिल किया जाता है जो उत्पादन की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करती है जैसे उत्पादों को बाजार तक ट्रैक्टर या ट्रक द्वारा पहुंचाना, व्यापारी द्वारा दूर - दूर के बाजारों तक पहुंच तक पहुंचाना, बैंकिंग सेवाएं देने तथा दूर संचार संबंधी सेवाएं देना। 




वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन गणना क्यो और कैसे - 


आज के जमाने में लोग विभिन्न प्रकार के आर्थिक गतिविधियों में कार्यरत हैं और बड़ी संख्या में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर रहे हैं। किसी भी राष्ट्र के कुल उत्पादन को जानने के लिए हमें राष्ट्र में होने वाले सभी उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन जानने के लिए आवश्यक होता है। यह जरूर विचार में आता होगा कि हजारों वस्तुओं और सेवाओ की गणना करना पेचीदा और असंभव कार्य लगता है। सभी वस्तुओं की गणना करना मुश्किल होगा क्योंकि विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं का मापन का पैमाना अलग अलग होता है।

इस वर्षा के समाधान के लिए हम मुद्रा रूपी मापदंड का प्रयोग करके वस्तुओं और सेवाओं को मूल्यों का योग करते हैं। यदि 300 किलोग्राम शक्कर का मूल्य ₹30 है तो कुल शक्कर का मूल्य ₹9000 होगा। 30 रुपये प्रति लीटर की दर से यदि 200 लीटर दूध बेचा जाता है तो ₹6000 होगा। एक डॉक्टर द्वारा आंख के ऑपरेशन के लिए ₹6000 प्रति ऑपरेशन की दर से ऑपरेशन करता है तो उसका मूल्य ₹60000 होगा।

कुल उत्पादन जानने के लिए हमें तीनों वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य जोड़ा परंतु सभी वस्तुओं और सेवाओं की गणना करें तो यह किस प्रकार होगा ? कई वस्तुओं का उत्पादन किन्ही अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए जाता है। ऐसी परिस्थिति में क्या सभी वस्तुओं की मूल्य को जोड़ना उचित होगा? प्रत्येक उत्पादित और बेची गई वस्तु या सेवाओं की गणना करने आवश्यकता नहीं है बल्कि अंतिम रूप से जिन वस्तुओं का उपभोग करते हैं उनके मूल्यों की गणना करनी चाहिए। आईये इसे उदाहरण के द्वारा समझते हैं - 

             माना कि एक किसान किसी राइस मिल को ₹15 प्रति किलो की दर से 100 किलोग्राम धान भेजता है इस प्रकार धान का विक्रय मूल्य ₹1500 हुआ। यहां किसान धान उत्पादन करने के लिए स्वंय घर के बीजों का उपयोग करता है। फिर राइसमील वाला 100 किलोग्राम धान से 60 किलोग्राम चावल तैयार करता है। जिसे वह ₹20 प्रति किलोग्राम की दर से किसी दूकानदार को बेचता है। इस तरह चावल का विक्रय मूल्य ₹1200 हुआ। अगले चरण में 55 किलोग्राम मुरमुरा दुकानदार उसे ₹50 प्रति किलोग्राम की दर से उपभोक्ता को बेचता है। अतः चावल का मुरमुरा अंतिम उत्पाद उपभोक्त के पास पहुँचता है। 


 इस तरह उत्पादन और सेवाओं को 3 अलग - अलग क्षेत्रो में विभाजित किया गया है जिससे उत्पादन की गणना करने में आसानी हो ताकि देश अपना विकास के कार्यो सही से बजट तैयार कर सके और राष्ट्र को समृद्ध बना सके साथ ही साथ देश की आर्थिक गणना विश्व के अन्य देशों के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा तथा प्रतिष्ठा सभी देशों के साथ बनी रहे ।


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